Saturday, September 24, 2011

यही तो है!





वक़्त के आईने में अपना ही चेहरा तब्दील हो जाता है.
और हम पीछे मुड़कर देखते हैं उन लम्हों को - इसी आईने में... तो वही प्यारा बचपन खिलखिलाता नज़र आता है.
अपनी आज की तस्वीर से अक्सर ये पूछा करते हैं -
'कहाँ है वो बचपन? क्या दूर कहीं है?? या यहीं कहीं है, छिपा हुआ-सा, अपने अन्दर ही!'


फूलों में बिखरे रंगों में,
या चंचल जल-तरंगों में,
यूँ धूप-छाँव में निखरा-सा,
जो नेह भरा, यही तो है!

वो बचपन की लड़ाई में,
या यौवन की अंगड़ाई में,
यूँ खोया, भूला, भटका-सा
जो ढूँढ रहा, यही तो है!

बरसों बचपन के दामन में,
जो गीत गुनगुनाए हैं हमने,
हवाओं के इन झोंकों में,
ये सरसराहट! यही तो है!...

...
हवाओं के इन झोंकों में,
ये सरसराहट! यही तो है!
खामोश लबों पे भीनी-सी
ये मुस्कराहट! यही तो है!

Tuesday, September 6, 2011

अग्निपथ से प्रेरित

कर आगे मत कर !
बढ़कर पथ पर पग धर !
तू क्यूँ विवश खड़ा है यूँ
डरकर, थककर, सहमकर?
सृजन सौभाग्य स्वयं कर,
सिर ऊंचा कर, होकर निडर !
बढ़कर पथ पर पग धर !
Inspired by 'Harivansh Rai Bachchan' :)