Friday, November 7, 2014

जीवन पूरन कर आई!



अरसों-बरसों से सूखी-सी
सब सन गयी औ' लिपट आई,
सुमनों से संचित मन की धरा
खुशबू से महक-महक आयी।

नव-जीवन अभिनन्दन हेतु
वंदन, चन्दन भी कर आई,
कर आलिंगन, मिल मन से मन
तन-मन सब अर्पण कर आई। 

जो बिम्ब बसा इन नयनों में,
उनपे ही नयन निमन आई,
नित-नित जो नव-नव रूप गढ़े,
उस नेह का नर्तन कर आई।

बहती श्वांसों की गंगा में,
वो डूबी, और उबर आई,
बस प्रेम को पाकर जाना कि
सब जीवन पूरन कर आई।


Picture Courtesy: http://www.layoutsparks.com/1/116318/what-is-love-abstract.html